Tuesday, April 26, 2011

सब कुछ जान के भी अंजान रहते हैं वो

सब कुछ जान के भी अंजान रहते हैं वो,
मेरी जान लेकर भी बेजान रहते हैं वो.
पर जब गुज़रता हूँ में उनकी गली से,
तो मुझे दूर से ही पहचान लेते हैं वो.
और जब आता हूँ में उनके करीब,
उनकी सादगी का ये आलम है,
अपने होठों को मेरे होठों पर मेहमान लेते हैं वो.

Monday, March 21, 2011

थोड़ी सी हवस थोडा सा प्यार

जब से मोरे पिया गए परदेस,
आसमान में पूर्णिमा का चाँद भी आधा अधुरा नज़र आता है.
और अमावस की वो काली रात,
जिसके गुप अँधेरे में पहली बार चूमा था मैंने उनको,
दिल में एक मीठा सा दर्द पैदा कर जाती है,
और मुझे ये बताती है,
के थोड़ी सी हवस के बाद ही बहुत सा प्यार पनपता है

Tuesday, March 15, 2011

होंठ तो मिलते रहते हैं,पर चिपकते नहीं हैं

फिर वो मिली.
कई साल बाद.
गोद में एक बच्चा लिए.
बदन पहले से कुछ भर गया था,
और सामने के कुछ बाल सफ़ेद हो गए थे.
पेशानी पर झुरियां पद गयी थी.
ज़िन्दगी का तजुर्बा दिखने लगा था.
वक़्त किस्सी को नहीं छोडता...

हमारी नज़रें मिलीं,
आँखों ने आँखों से बातें की,
वो मेरी तरफ देखकर शायद मुस्कुराये भी.
पर होंठ से होंठ नहीं मिले,
वो होंठ जो कभी चिपक जाते थे,
साँसों की गहमा गहमी में....

तुम मेरे लिए एक पुराना ख्वाब बन कर रह गयी हो,
जो कभी कभी याद आता है,
भीड़ में तनहा कर जाता है,
और ये याद दिलाता है के..
आदमी ज़िन्दगी में मोहब्बत सिर्फ एक बार करता है...
प्यार तो कई बार होता है.
होंठ तो मिलते रहते हैं,
पर चिपकते नहीं हैं.

Monday, March 7, 2011

सारे मोहल्ले में दंगा मच गया

सुबह सुबह नींद से उठकर,
मेरी कमीज़ पहने,
balcony मैं जाकर जो तुमने ली अंगड़ाई,
सारे मोहल्ले में दंगा मच गया

कई हसीं सुबहें यूँ भी गुजरीं हैं

कुछ कबूतर और कौवे और उड़े कायनात मैं,
मैं खुली खिड़की से उगते हुए सूरज को देख रहा था,
तुम अपने आप को ढकने के लिए मेरी t shirt पहन रही थी.
कई हसीं सुबहें यूँ भी गुजरीं हैं

Thursday, March 3, 2011

क्या चाँद भी अपनी चांदनी के लिए गरम है?

दिन भर की धुप से तप कर रात का कमरा गरम है.
मैं भी गरम हूँ, तुम भी गरम हो.
cross ventilation के लिए खुली खिडकियों से,
बादलों मैं छुपता छिपाता चाँद हममे छुप छुप कर देख रहा है.
क्या चाँद भी अपनी चांदनी के लिए गरम है?

Monday, February 21, 2011

लेकिन सब पलछिन...

प्यार करने के बाद की शांति.
दिमाग एक अजीब शुनिया की स्थिथि मैं.
तुम और मैं गददे पर पड़े, बाहों मैं बाहें डाले,
दो की स्पीड पर चलते हुए पंखे को देख रहे हैं.
तुम्हारा सर मेरे कंधे पर और मेरी उँगलियाँ तुम्हारे बालों को सहला रही हैं.
तुम हलके से चादर को खीचती हुई हमारे ऊपर डाल देती हो.
तुम्हारे cigarette का धुआं तुम्हारे मेरे अन्दर.
love bites जिनका दर्द धीमे धीमे बढ़ रहा है.
मेरी कमर पर तुम्हारे नाखूनों के निशाँ.
और तुम्हारी पेशानी पर एक हल्का सा चुम्बन.
गर फिरदौस, रूहे ज़मीन अस्त, हमीं असतो, हमीं असतो, हमीं असतो*.
लेकिन सब पलछिन, शनभंगुर.

*(if there is paradise on earth, here it is, here it is, here it is)